Sunday, January 2, 2011

रावण-दहन


बरसों  से  हम लगाते, रावण जी में आग |
लेकिन वह हर साल ही, जी जाता है घाघ ||
जी  जाता  है घाघ, और जोरों से हँसता |
गली, मोहल्ले, शहर, देश सब जगह वो बसता ||
कहे ' शून्य ' कविराय, मारना है यदि उसको |
पहले  अपने  भीतर  मारो, बैठ  गया जो || 

- सी.एम.उपाध्याय ' शून्य आकांक्षी '



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